
वो कोई फिल्मी रात नहीं थी — वो एक ऑपरेशन सिंदूर थी, जहां भारतीय सैन्य रणनीति इतनी शांत, सटीक और सिनेमाई थी कि पाकिस्तान को समझ ही नहीं आया कि बंकर कब बना और कब उड़ा। और जब उड़ा, तो हारोप और हारपी नाम के इजरायली ड्रोन पाकिस्तान की रडार स्क्रीन से पहले गायब हुए, फिर आकाश से टपके और बम बनकर फट पड़े।
ड्रोन नहीं थे साहब, उड़ती हुई तबाही थी।
तेज प्रताप बोले- जयचंदों से नहीं, बस मम्मी-पापा से प्यार चाहिए!
रडार, एयरबेस और अगली सुबह का बदला
7 मई को जवाब में पाकिस्तान ने ड्रोन भेजे। भारत ने कहा — “ठीक है, अब हमारी बारी।” अगली सुबह भारतीय सेना ने हारपी ड्रोन से लाहौर के पास रडार स्टेशन को चुटकी में मिटा दिया। फिर 9-10 मई की रात, मुरीद एयरबेस पर रैम्पेज मिसाइलों की बरसात हुई।
नाम ‘रैम्पेज’, काम फुल रैम्पेज – अंडरग्राउंड कमांड सेंटर ऐसे उड़ा कि अब सिर्फ ‘ग्राउंड’ ही बचा है।
पर असली ‘ट्विस्ट’ आया इजरायल से!
ऑपरेशन के बाद सब सोच रहे थे कि पाकिस्तान अब कूटनीतिक नोट भेजेगा, लेकिन असली नोट आया इजरायल से — वो भी डॉलर्स वाला! जी हां, इजरायल ने भारत की पुणे स्थित प्राइवेट कंपनी NIBE Ltd. से वो यूनिवर्सल रॉकेट लॉन्चर मांगे, जिनका इस्तेमाल ऑपरेशन सिंदूर में हुआ।
अब तो मामला ऐसा हो गया कि जिसने मिसाइल दी थी, अब वही मिसाइल मांग रहा है।
इजरायल को चाहिए भारत का हथियार – 150 करोड़ में!
करीब 150 करोड़ रुपये का सौदा हुआ है — वो भी एक प्राइवेट भारतीय कंपनी से, न कि किसी DRDO या HAL से। इजरायल, जो खुद हथियारों का ओवरऑल मास्टर है, भारत से हथियार खरीद रहा है?
अब रक्षा सौदों में भी ‘Make in India’ को Oscar भेजना चाहिए।
भारत की प्राइवेट डिफेंस इंडस्ट्री: चाय से मिसाइल तक
अब यह कोई संयोग नहीं है। पहले गुजरात की कंपनी ने इजरायल को 10,000 ड्रोन सप्लाई किए, और अब महाराष्ट्र की कंपनी ने रॉकेट लॉन्चर थमा दिए। भारत अब सिर्फ़ सीमा की रक्षा नहीं, बल्कि दुनिया के झगड़ों के लिए हथियार सप्लाई कर रहा है।
हम जंग नहीं लड़ते, लेकिन हथियार हमारे ही चलते हैं।
डिप्लोमेसी हो या डील – मोदी-नेतन्याहू की कैमिस्ट्री काम कर रही
इसे कुछ लोग डिफेंस डिप्लोमेसी कहते हैं, तो कुछ स्मार्ट स्ट्रैटेजिक ट्रेड। लेकिन जब इजरायल जैसे देश भी भारत से हथियार मंगा रहे हैं, तो बात सिर्फ़ ट्रेड नहीं रह जाती — यह विश्वसनीयता की मोहर बन जाती है।
डिफेंस डील की जगह अब “डीप फ्रेंडशिप डील” कहें तो गलत न होगा।
भारत रणनीतिक हथियार व्यापारी?
UNO हो या NAM, भारत की पहचान रही है शांतिदूत की। लेकिन अब वही देश मिडल ईस्ट से लेकर POK तक हथियारों की पैकेज डिलीवरी करने में जुटा है। इसका क्या मतलब निकाला जाए?
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क्या यह भारत की बढ़ती ताकत है?
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या हम वैश्विक संघर्षों के साइलेंट स्पॉन्सर बनते जा रहे हैं?
भारत की नीति है – “हमने कुछ नहीं कहा, पर जो कहा वो लॉन्चर से कहा।”
भारत अब सिर्फ मिसाइल चलाता नहीं, बाजार भी बनाता है
ऑपरेशन सिंदूर से शुरू हुआ सफर अब इजरायल जैसे देशों की शॉपिंग लिस्ट में शामिल हो चुका है। भारत अब सिर्फ़ युद्ध जीतने वाला देश नहीं, बल्कि युद्धों की दिशा तय करने वाला देश बन रहा है।
वो दौर गया जब भारत ‘जंग’ से डरता था। अब जंग भी पूछती है — “भारत, तुम्हारे पास क्या नया है?”
अंत में एक सवाल…
भारत अब सिर्फ मिसाइलें नहीं बनाता, वो तय करता है कौन किससे लड़ेगा, और किसके पास क्या होगा। क्या यही है नया सुपरपावर बनने की परिभाषा?